गीत जीवन लड़कैया से, सपनो की नैया से तारों के पार चलें, आओं ना यार चले उतनी ही प्यास रहे, जितना विश्वास रहे मन की तरंगों से पुलकित उमंगों से आशा के विन्दु से जीवन विस्तार चले........ आओं ना यार चले...... क्या था जो पाया था, क्या था जो खोया था था कुछ समेटा जो सारा ही जाया तो खुशियों की टहनी को थोड़ा सा झार चले....... आओं ना यार चले........ डोली पे फूल झरे, दो दो कहार चले सुन्दर सी सेज सजी, तपने को देख रही मन की अगनिया को थोड़ा सा बार चले ......... आओं ना यार चले........... पांचो का मेल यहाँ, पाँचों में मेल हुआ मिलने को प्रीतम से दुल्हन चल दी, जैसे नदिया से सागर तक, पानी की धार चले........ आओं ना यार चले.......... | नवगीत प्रेम की गुनगुनी धूप है सूर्य तो बस सुधा कूप है हंस रहा रश्मियाँ भेजकर तीर्थ के दीप सा बल रहा कष्ट में पुष्प सा खिल गया अनगिनत विश्व का छंद है कांति का शांति का रूप है सूर्य तो बस सुधा कूप है ब्रह्म के कण विचरते हुए बल तेरा मिल गया हर दिशा शून्य में रूप तू इष्ट का अस्त पर व्यस्त तू फिर कहीं कर्म का धर्म का यूप है सूर्य तो बस सुधा कूप है सृष्टि के पुत्र का पालना तप्त भी तो मनुज के लिए सिंदूरी सिंदूरी थपकियाँ कोपलें, गर्भ की सर्जना मन प्रजा में छिपा भूप है सूर्य तो बस सुधा कूप है |