ग़ज़ल

दौर बदला है, बदल जा,   ऐ सुखनवर साथ चल 

सोचता है जिस जबां में, उस जबां में लिख ग़ज़ल

 

जिंदगी बदलाव है...... गर थम गए तो है कज़ा

आज ही किस्मत बदल जाए जरा खुद को बदल

 

जब भरोसा होगा अपनी जात पर खुद आपको

हौज़-ए-दिल में तब खिलेंगे कामयाबी के कँवल

 

खौफजद को मारती है बारहा ये मौत पर

जंगजू की जिंदगी में इक दफा देती दखल

 

खौफ़ ने जब से शराफत को निकम्मा कर दिया

कह दिया हमने सदाकत से कि तू खुद ही संभल

 

खुद सुखन पैदा करेगी अपना इल्मे-फ़लसफ़ा

तज्रिबा अपना सुना बस, छोड़ औरों की नक़ल

 

कब जुरूरत दोस्तों को, दुश्मनों को कब यकीं?

फिर सफाई दे रहे हो किसलिए यूं आजकल?

 

इल्मे-दुनिया से हुए नापाक, हैरां, बदगुमां

इस मुक़द्दस इल्म से पाया लताफ़त का फज़ल

 

तब नसीहत का पिटारा बाअदब लौटा दिया

जब मसाफ़े-जीस्त में नासेह देखे नाअहल

 

आज फिर अहले-जहां का जश्ने-मातम हो गया

ये सदा आलम में छायी- हो रहम दस्ते-अजल

 

वो बदलते नहीं है अगर,  तो फ़क़त इतना चल जाएगा

आप खुद ही बदल जाइए, ये ज़माना बदल जाएगा

 

बात इतनी सी है ये मगर, नासमझ बन के बैठे हुए

बेटियाँ जो तरक्की करें, ये वतन ही संभल जाएगा

 

इस फ़िजूली से बेहतर यही, कुछ न कुछ आप करते रहें

काम करते रहें आप तो कोई मकसद निकल जाएगा

 

नर्म लफ़्ज़ों से हो जाते है सख्त़-दिल भी फतह, मान लो

आप लहजे से बेहतर हुए और पत्थर पिघल जाएगा

 

इल्म क्या है किताबी भला, तज्रिबा जो नहीं आपको

दो बुजुर्गों से मिल आइये, काम इतने से चल जाएगा

 

जब भी बारिश जरा सी हुई तो उफनती है छोटी नदी

वो है कमज़र्फ, दौलत न दो वो यक़ीनन मचल जाएगा

 

ख्वाहिशों की हदें क्या बला? जो समझना अगर आपको 

एक बच्चे को पुचकारिये, वो खुशी से उछल जाएगा

 

ये यकीं मान ले ऐ बशर, है ठिकाना घड़ी दो घड़ी   

इस जहां में जो आया था कल, इस जहां से वो कल जाएगा

 

एक दर बंद जो हो गया, दूसरा मुन्तज़िर मान लो  

अपनी कोशिश को आवाज़ दो, कोई रस्ता निकल जाएगा

 

इन ख़ुशी के पलों को अगर, जो समेटा नहीं आपने

ये खबर भी न हो पाएगी, वक़्त यूं ही फिसल जाएगा